हम दिव्य चेतना के नवगीत गा रहें हैं ।
नूतन मनुष्य के हित नव युग बुला रहें हैं । ।
जिसमें समस्त भारत साकार हो गया था,
जो कोटि-कोटि जन का आधार हो गया था ।

आलोकमय पुरुष वह प्रेरक सदा हमारा
जिसके लिए जगत यह परिवार हो गया था,
हम याद में उसी की दीपक जला रहें हैं
नूतन मनुष्य के लिए नव युग बुला रहें हैं

जिसके यशेन्दु मंज्ज़ुल सब ओर छा रहें हैं
पियूष – राशि सबको अब भी पिला रहा है,
वह मालवीय प्यारा, था विश्व का सहारा,
इस तीर्थ में निरन्तर जो मुस्कुरा रहा है

हम ज्ञान – पुष्प उस हर पल चढ़ा रहें हैं।
नूतन मनुष्य के लिए नव युग बुला रहे है।।
तन से स्वतन्त्र , मन से धन से स्वतन्त्र मानव,
आमूल चूल चेतना अति शुद्ध – बुद्ध अभिनव,

अवतरित हो यही था सपना महामना का
हम मनुज गढ़ रहे हम मानव बना रहें हैं।
हम दिव्य चेतना के नव गीत गा रहे है।।
नूतन मनुष्य के हित नव युग बुला रहे है।।

शुचि शक्ति-शील सुषमा से सब जगर मगर है
अलोक से चमकती सब ओर की डगर है
सत्य तथा शिव का सौन्दर्य का शुभस्थल यह
‘मालवीय तीरथ’ यह ज्ञान का नगर है
आकाश – भूमि दोनों मिल मुस्कुरा रहे है।।

हम दिव्य चेतना के नवगीत गा रहे है
नूतन मनुष्य के लिए नव – युग बुला रहे है।